इतनी खामोशी से उत्तर कोरिया क्यों गए वीके सिंह ?

2018-07-01 0

गुमनाम दौरा क्यों

15 मई को जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे थे उसी दिन भारत के विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह कोरिया पहुंचे थे। वीके सिंह का यह दौरा हैरान करने वाला था क्योंकि पिछले 20 सालों में यह किसी भारतीय मंत्री का पहला दौरा था। कर्नाटक विधानसभा के चुनावी नतीजे के शोर में मीडिया में इस यात्रा को बहुत तवज्जो नहीं मिली पर इस दौरे की खास अहमियत है।

अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जनरल वीके सिंह की मुलाकात उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग -उन से हुई या नहीं। वीके सिंह के इस दौरे को बहुत ही गुमनाम रखा गया। अपने मंत्रियों के हर दौरे और मुलाकात की तस्वीरों को विदेश मंत्रालय अपने आधिकारिक ट्वीट अकाउंट से ट्वीट करता है। लेकिन इस दौरे की एक तस्वीर तक नहीं ट्वीट की गई।

आखिर भारतीय विदेश मंत्रालय ने वीके सिंह की यात्रा को इतना गुमनाम क्यों रखा?

इस सवाल के जवाब में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कोरियाई अध्ययन केन्द्र की प्रोफेसर वैजयंती राघवन कहती हैं। ‘‘जनरल वीके सिंह के दौरे को गुमनाम रखने का मकसद यह रहा होगा कि इसे लेकर बहुत अटकलें नहीं लगाई जाएं। उत्तर कोरिया अपने आप में दुनिया का सबसे बदनाम और रहस्यपूर्ण देश है।

एक सवाल यह भी उठ रहा है कि राजनयिक पृष्ठभूमि वाले शख्स को भेजने की तुलना में मोदी सरकार ने पूर्व आर्मी प्रमुख को भेजना क्यों उचित समझा? इस सवाल के जवाब में राघवन बताती हैं कि यह भी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

राघवन कहती हैं, ‘‘उत्तर कोरिया को सैन्य दृष्टि से समझने की ज्यादा जरूरत है और संभव है कि सरकार की सोच मेें यह बात रही होगी। हालांकि भारत, चीन के बाद उत्तर कोरिया का दूसरा सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर है। दोनों देशों के सम्बंधों में आना-जाना भले कम था लेकिन रिश्तों में ठहराव जैसी स्थिति नहीं थी।’’

भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपन एक बयान में कहा है कि वीके सिंह की मुलाकात उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री से हुई और कई द्विपक्षीय मुद्दों पर बात हुई है। इस दौरे की रिपोर्ट कोरिया के सरकारी अखबार रोदोंग सिनमुन में भी छपी है। अखबार कहा कहना है कि भारतीय विदेश राज्यमंत्री विजय कुमार सिंह एक प्रतिनिधि मंडल के साथ उत्तर कोरिया पहुंचे और उनकी मेजबानी यहां के विदेश मंत्री ने की।

उत्तर कोरिया जब दक्षिण कोरिया से बात कर रहा है और अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड टंªप से शिखर वार्ता करने वाले हैं, ऐसे समय में भारत ने अपने एक मंत्री को भेजने का फैसला किया है। राघवन कहती हैं कि कुछ महीने पहले तक जब उत्तर कोरिया पर अमरीका लगातार प्रतिबंध लगा रहा था तो भारत को भी अमरीकी दबाव मेें उत्तर कोरिया से व्यापारिक रिश्तों में कटौती करनी पड़ी थी।

उत्तर कोरिया से भारत की शिकायत पाकिस्तान से रिश्तों को लेकर रही है। कहा जाता है कि पाकिस्तान ने उत्तर कोरिया को परमाणु शक्ति देने में मदद की और उत्तर कोरिया ने पाकिस्तान को मिसाइल तकनीक दी। दोनों देशों के इस रिश्ते से भारत हमेशा चिंतित रहा है। 

ये भी पढ़ें- पाकिस्तान से भारत के रिश्ते

शक

जगजीत सिंह सपरा 1997 से 1999 तक उत्तर कोरिया में भारत के राजदूत थे। कहा, ‘‘हमने जो उत्तर कोरिया में किया वो तो ठीक है लेकिन जो नहीं किया वो और ठीक है। जैसे पाकिस्तान के बारे में कहा जाता है कि उसने परमाणु तकनीक बाइपास किया है, हमने ऐसा कोई काम नहीं किया क्योंकि हम इस नीति पर भरोसा नहीं करते कि किसी को चुपके से कुछ दे दिया जाए।’’

जब मैं उत्तर कोरिया में था तब पाकिस्तान के वहां दोनों राजदूत आर्मी मैन थे। दिलचस्प है कि दोनों उत्तर कोरिया के शीर्ष नेतृत्व के काफी करीब थे। अब वो क्या बात करते थे ये तो लिखित है नहीं लेकिन कुछ तो हो रहा था।’’

ये भी पढ़ें- चीन के पाले से नेपाल को खींच पाएगा भारत?



मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें