कुदरत की कहर या इंसानी गलती

2018-09-01 0

भारत के दक्षिण भारतीय राज्य केरल पर इस वक्त जो विपदा आई है वो इंसान और पानी के बीच अपने अस्तित्व और अपनी जगह की लड़ाई का सबसे ताजा उदाहरण है। ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा इंसानों और जंगली जानवरों के बीच जंगल के लिए होने वाली लड़ाई होती है।

ये उत्तराखंड , कश्मीर, गुजरात, मुंबई और चेन्नई में पिछले दशक में अपनी जगह के लिए इंसानों को किनारे पर धकेलते पानी से उपजी आपदा से बिल्कुल अलग नहीं है। इन सभी जगहों पर पानी ने अपनी जगह वापस पाने के लिए इंसानों और उनके विनाशकारी विकास को बुरी तरह किनारे कर दिया है।

एक के बाद एक कई विशेषज्ञों ने  बातचीत में कहा कि ये सच है कि इस साल केरल में मॉनसून आने के बाद से वाक़ई असाधारण रूप से बहुत ज्यादा बारिश हुई है। भारत के मौसम विभाग ने खुद इसे एक हफ्रते में सामान्य से साढ़े तीन गुना ज्यादा और एक दिन में 10 गुना ज्यादा बारिश बताया है।

बारिश से होने वाला नुक़सान तो अपनी जगह है ही, लेकिन इंसानों ने जानमाल के नुकसान को बढ़ाने में एक बड़ी भूमिका निभाई है।

ये अभूतपूर्व बारिश नहीं बल्कि ऐसी आपदा है जिसकी मिसाल कम ही देखने को मिलती है। ये कहना है जानी-मानी मौसम वैज्ञानिक और भारतीय विज्ञान संस्थान में सेंटर ऑफ ऐटमॉस्फेरिक एंड ओशिएनिक साइंसेज की पूर्व चेयरपर्सन डॉक्टर सुलोचना गाडगिल का। 

बारिश बाढ़ का प्रकोप कम होते ही केरलवासी अपने बर्बाद घरों की ओर लौटे, विदेशी मदद पर राजनीति गरमायी ज्यादातर घर अब रहने लायक नहीं रह गये।

 वहीं, विदेशी अनुदान को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ गयी है। राज्य की एलडीएफ सरकार ने कहा कि ऐसी सहायता राशि को स्वीकार किया जाना चाहिए जबकि केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वह लंबे समय से चली आ रही अपनी नीति के तहत दूसरे मुल्कों से कोई नकद चंदा नहीं स्वीकार करेगी।

केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने कहा कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की ओर से बाढ़ राहत सहायता के तौर पर केरल को की गयी 700 करोड़ रुपये की पेशकश स्वीकार करने में यदि कोई दिक्कत है तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष इस मुद्दे को उठाएंगे और कहेंगे कि वह दिक्कत दूर करें।

राज्य सरकार को विपक्ष के गुस्से का भी सामना करना पड़ा जिसने इस मानवजनित त्रसदी के लिए उसे दोषी ठहराया है। पुनरुद्धार के प्रयास शुरू करते हुए राज्य में पारंपरिक मेलजोल भी पूरे जोरों पर दिऽा जहां मस्जिद के दरवाजे परेशान हिंदुओं के लिए ऽोले गए और मुस्लिम मंदिरों की सफाई करते नजर आए।

हालांकि बाढ़ के कम होते ही पानी से छूटी मिट्टी एवं कीचड़ से भरे अपने घरों को देऽकर ज्यादातर लोगों के चेहरे पर निराशा के भाव नजर आये। अपने घर की हालत देऽकर 68 साल के एक बुजुर्ग ने आत्महत्या कर ली। इससे पहले बाढ़ के पानी में अपने प्रमाण-पत्र बर्बाद हो जाने के चलते एक किशोर ने भी आत्महत्या कर ली थी।

अधिकारियों ने बताया कि केरल के कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों से विमानों का परिचालन 26 अगस्त की बजाय 29 अगस्त से दोबारा शुरू होगा। पिछले करीब एक हफ्रते से इस हवाई अड्डों पर परिचालन रुका हुआ था। प्रभावित इलाकों में बचाव कार्य समाप्त होने की कगार पर पहुंचने के साथ ही सरकार ने अपना ध्यान लोगों के पुनर्वास पर केंद्रित कर दिया है।

केरल में हुई अनियमित वर्षा ने तो इस सदी की भीषणतम बाढ़ दिऽा दी। भारत सरकार और केरल सरकार, दोनों ही परेशान हैं। वहां बाढ़ प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। वास्तविक नुकसान का आकलन अभी शेष है।

मुख्यमंत्री विजयन ने बताया कि 13।34 लाऽ लोग अब भी राहत शिविर में मौजूद हैं। दक्षिणी नौसेना कमान ने बाढ़ प्रभावित केरल में आज 14 दिन का अपना बचाव अभियान बंद कर दिया और कहा कि प्रभावित इलाकों में पानी घटने के कारण लोगों को निकालने के लिए और कोई अनुरोध सामने नहीं आया है।

बाढ़ के प्रकोप से धीरे-धीरे उबर रहे केरल में आज बकरीद बिल्कुल सामान्य ढंग से मनायी गयी। राज्यभर में मस्जिदों में सैकड़ों श्रद्धालु कुर्बानी का त्योहार मनाने पहुंचे। उन लोगों के लिए विशेष नमाज अदा की गयी जिन्होंने अपनी जान गंवायी है और उनके लिए भी, जो बाढ़ की मार झेल रहे हैं।

राज्य में आठ अगस्त से अब तक वर्षा और बाढ़ जनित घटनाओं में 231 लोगों की मौत हुई है। तमिलनाडु में भी बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए नमाज अदा की गयी। कांग्रेस की राज्य इकाई ने उन खबरों  को निराशाजनक बताया, जिसके मुताबिक केंद्र सरकार नकद में विदेशी चंदा नहीं स्वीकार करेगी।

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथला ने एक साथ 40 बांधों से पानी छोड़े जाने की परिस्थितियों के संबंध में एक न्यायिक जांच की मांग की। मुख्यमंत्री ने भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली का बाढ़ पीडि़तों को याद करने के लिए धन्यवाद किया और कहा कि उनकी सरकार 26 अगस्त को उन सैन्यकर्मियों को सम्मानित करेगी जिन्होंने बचाव अभियान में हिस्सा लिया।

सदी की सबसे बड़ी बाढ़ का दिखा  ऐसा प्रकोप

100 सालों में पहली बार केरल में इस तरह का जल प्रलय आया है। इस तबाही के चलते फसल और संपत्तिायों समेत हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हो गया है। इस बाढ़ के प्रकोप के चलते 2।23 लाऽ लोग और 50,000 परिवार बेघर हो गए। आपको बता दें कि केरल सरकार ने बाढ़ से आई आपदा के मद्देनजर 2,600 करोड़ की मदद की मांग की थी। इसे देऽते हुए मौजूदा समय में केंद्र सरकार ने 600 करोड़ रुपये दिए हैं।

54 लाख  से अधिक लोग हुए बाढ़ से प्रभावित

केरल सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दािऽल किए गए इस हलफनामे में ये भी खुलासा किया गया है कि केरल की आबादी कुल 3।48 करोड़ है जिसमें से करीबन 54 लाऽ से ज्यादा लोग इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।

सरकारी पहलेंः प्राकृतिक आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, भारतीय मौसम विभाग, सेना, नौसेना, केंद्रीय जल आयोग, गृह मंत्रलय और रक्षा मंत्रलय जैसी कई सरकारी एजेंसियों को केरल में भारी बाढ़ निकासी, बचाव और राहत कार्यों को अमली जामा पहनाने के लिए नामांकित किया गया है।

केंद्र सरकार ने बाढ़ की आशंका वाले केरल में रहने वाले लोगों को 100 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने की भी घोषणा की है। पड़ोसी राज्य, तमिलनाडु और कर्नाटक ने भी केरल को सहायता प्रदान करने में अपना योगदान दिया है। केरल 

सरकार ने इस वर्ष ओणम के जश्न को रद्द कर दिया है और उत्सव के लिए एकत्रित किए गए धन का उपयोग बाढ़ राहत कार्यों में करेंगे।

जदेश के समृद्ध और विकसित राज्यों में से एक होने के बावजूद, केरल हाल ही में सबसे ऽतरनाक बाढ़ का सामना कर रहा है। सामाजिक और आर्थिक रूप से इतना अधिक सम्पन्न होने के बावजूद, इस आपदा के पीछे का क्या कारण है? दोषी कौन है मानसून बारिश या मानव गतिविधियां?

उच्च दर पर वनों की कटाईः 

केरल में वनों की कटाई और बदलती भूमि पैटर्न बाढ़ का महत्वपूर्ण कारक है। वायनाड और इडुक्की के जिलों को सबसे ज्यादा घने जंगल के रूप में गिना जाता है। हालांकि, 2011 और 2017 के बीच में इन जिलों के वनों का विस्तार लगातार घटता हुआ देऽा गया है। इससे ये क्षेत्र भारी बाढ़ के लिए अतिसंवेदनशील बन गए हैं।

केरल में बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली की कमीः भारी बारिश और बाढ़ से ग्रस्त होने के बावजूद केरल राज्य में उचित बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली की कमी है। भारत की एकमात्र बाढ़ भविष्यवाणी एजेंसी, केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) को केरल में बाढ़ की स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। यह स्थिति को और भी बदतर बना देता है क्योंकि स्थानीय लोगों के पास स्थिति से निपटने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं है। सीडब्ल्यूसी ने राज्य में बाढ़ निगरानी स्थलों की स्थापना की है, लेकिन उनमें से कुछ क्रियाशील ही नहीं हैं।

असामयिक रूप से बांधों से अधिशेष पानी छोड़नाः जब केरल राज्य पहले से ही गंभीर बाढ़ की स्थिति से निपट रहा था, तो दो दर्जन से अधिक बांधों ने भारी मात्र में पानी छोड़ा जिसने स्थिति को और भी अधिक ऽराब कर दिया। भारत में मानसून आने से पहले अधिकारी क्या कर रहे थे? जब हम केरल के मलप्पुरम, कण्णूर, इडुक्की, एर्नाकुलम, कोझिकोड, वायनाड और पालक्काड़ जैसे जिलों के बारे में सोचते हैं, तो ये प्रश्न हर किसी के दिमाग में उभरते हैं, जो आपदाजनक बाढ़ का सामना कर रहे हैं और भारी बाढ़ और भूस्ऽलन से मानव जीवन को हो रहे नुकसान भी देऽ रहे हैं।

अंतिम शब्द

केरल की वर्तमान स्थिति सरकार द्वारा लचीली योजना की मांग करती है। जिसकी शुरुआत नदियों के किनारे रहने वाले लोगों को जोिऽम क्षेत्रें से दूर स्थानांतरित करके की जानी चाहिए जो पिछले कुछ हफ्रतों में लगभग दो दर्जन बांधों के द्वारा ऽोले जाने वाले पानी से बाढ़ की चपेट में हैं। निश्चित रूप से एक आबादी वाले उचित भूमि को ढूंढना, जंगली केरल में एक बड़ा काम है, लेकिन यह भविष्य के लिए तैयार होने की एक निश्चित आवश्यकता है। केरल में बाढ़ के दौरान महामारी से निपटने के लिए कुशल चिकित्सा सुविधा बहुत ही आवश्यक है। इस वर्ष की हड़ताली आपदा एक बीमाकर्ता के रूप में सरकार की भूमिका और एक औसत नागरिक के लिए अंतिम विकल्प पर जोर देती है।


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